*इस कदर छाये जहन मे नींद आती ही नहीं*
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इस कदर छाये जहन मे नींद आती ही नहीं
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इस कदर छाये जहन में,नींद आती ही नहीं,
बँध गये तेरे वचन में, नींद आती ही नहीं।
याद अक्सर ही हमे तड़फा रही है रात दिन,
ख्वाब मे तेरे वतन में, नींद आती ही नही।
आँख तुम से है लड़ी ,कटती नही कोई घड़ी,
चाँद तारे भी लगन में ,नींद आती ही नहीं।
बात सुनलो ध्यान से,हम रह न पाएं तुम बिना,
हम खड़े कब से शरण में,नींद आती ही नहीं।
झड़ गयें हैँ फूल सारे गुलिस्ता़ं से इस कदर,
क्या बचा उजड़े चमन में, नींद आती ही नहीं।
देख कर पंछी अकेला डाल चोगा फांसता,
झूमता खग हो गगन में, नींद आती ही नहीं।
सोचता हूँ हर पहर तेरा सदा हो आसरा,
पास आ जाऊं चरण में,नींद आती ही नहीं।
रोक मनसीरत हवा को जो चली बे मौसमी,
डाल दी आहुति हवन में, नींद आती ही नहीं।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)