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2 Apr 2022 · 1 min read

इस अनोखी रस्म का नश्शा न डालो

इस अनोखी रस्म का नश्शा न डालो
इश्क़ वालों इश्क़ पर पहरा न डालो

किस तवक़्क़ो’ के लिए इतना गुमाँ है
खून से फिर खून का लहजा न डालो

ग़म भुलाने आए चल कर मैकशी तक
ग़म भुला के फर्श पर बादा न डालो

देख, लैला आया मज़नू का जनाज़ा
कैस के चेहरे पे अब पर्दा न डालो

इक हसीना इक नज़ारा फिर ख़सारा
यार अब किरदार मे क़िस्सा न डालो

क़ौम के मज़्मे में मैं भी चल रहा हूँ
ज़ात का फिर पाँव मे शीशा न डालो

रहमतों का शहर इक वीराँ पड़ा है
फिर ज़रा सी बात पर लाशा न डालो

दीप जौदत का बुझाने मे लगे हो
फिर हवा को दोष दे गिर्या न डालो

दास्तान-ए-ग़म न पूछो तुम हमारी
बस हमारे ज़र्फ मे सिक्का न डालो

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