इस्लाम में थोड़े मंसूर होते
दूर तुम भी न होते न हम दूर होते।
इश्क में क्यों भला आज मजबूर होते।।
महफिलों से निकाला न जाता कभी मै ।
फैसले हर तरह के जो मंजूर होते।।
झूठ को भी मुहब्बत जो मिल जाती उसकी।
तो हमारी तरह तुम भी मशहूर होते।।
आज इस्लाम इतना न बदनाम होता।
गर जमातों में थोड़े से मंसूर होते।।
#मंसूर जिसे इस्लामिक धर्मगुरुओं के कहने पर नवाब ने पत्थर मारकर मारने की आज्ञा दी।
कवि गोपाल पाठक “कृष्णा”
बरेली,उप्र