इश्क़ ज़हर…. ओ पागल…!!
बहता जल
कल कल कल।
प्रश्न कठिन
मुश्किल हल।
कीचड़ में
देख कमल।
पांव बचा
है दलदल।
आंख लड़ी
तो हलचल।
रोज नहा
तन मल मल।
खींच लहू
है निर्बल।
मंज़िल तक
चलता चल।
तन्हाई
हर इक पल।
इश्क़ ज़हर
ओ पागल।
जाने कौन
क्या हो कल।
बाबू जी
चल चल चल।
नींद कहाँ
बिन मखमल।
छम छम छम
पग पायल।
जान बचा
चाल बदल।
ले डुबकी
गंगाजल।
देर हुई
अब घर चल।
खूब कही
आज ग़ज़ल।
पंकज शर्मा “परिंदा”