इश्क़ हो हमारे दरम्यां
उफ वो तिरछी नज़र तेरी गढ़ी दिल मे ऐसे कि
जब जब खोली उसने खिड़कियां रात में
तब तब गिर गई है बिजलियां बरसात में
नाम उस शय का वो खुदा जानता होगा
पी गए हम नजरों से जो मय बरसात में
अपनी जुल्फें सँवारता रहता था रातदिन
जाने अब कब मिलेंगी छूटियाँ बरसात में
आशिकी में आया यूँ नया मोड़ यारों कि
उसकी चुनरिया गिरकर भीगी बरसात में
इस जवां मौसम का लुत्फ लिया मैंने भी
उड़ाकर हवा में कुछ छतरियां बरसात में
उसके ऊंचे मकान से,इस कदर झांकना
अलाव जला बैठे रहे सर्दियां बरसात में
हम तो बस जलने का मजा लेते रहे कि
भड़का के गया इश्क चिंगरियाँ बरसात में
हम लौट ही आते अपने घर को ग़ालिब
पर ना मिली मां की उंगलियां बरसात में
गुनगुना कर रह गए हम उस पर ग़ज़ल
इश्क़ हो गया हमारे दरमियाँ बरसात में
अशोक सपड़ा हमदर्द