इश्क़ की जादूगरी
शीर्षक – इश्क़ की जादूगरी
तेरी ख़ुशबू से महक़ रहा हूँ आजकल ।
ये तेरा इश्क़ संदल से कम नहीं ।।
मिल जाये अगर साथ तेरा तो ।।।
ज़माने का मुझको गम नहीं ।।।।
महसूस हो रही है रईसी आजकल ।
ये तेरी चाहत दौलत से कम नहीं ।।
मशहूर हो गया हूं तेरे इश्क़ में ज़ालिम ।।।
ये बदनामी भी शोहरत से कम नहीं ।।।।
ज़ेहन ओ दिल तेरी परस्तिश में आजकल ।
ये दीवानगी तो इबादत से कम नहीं ।।
मेरे हिस्से आयीं हैं यादें मख़मली ।।।
ये तेरी आरज़ू किसी रिवायत से कम नहीं ।।।।
जहां वफाएं नहीं वहां चाहत कहाँ ।
ये मोहब्बत किसी हक़ीक़त से कम नहीं ।।
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
अहिल्या पल्टन, इंदौर