इश्क़ का अंज़ाम
आँखों में समन्दर और लबों पर तिश्नगी है,
जैसी भी है यार, बड़ी हसीं जिंदगी है।
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एक एक पत्ता गिरेगा इस शाख से,
जल्द ही शज़र शर्माना बन्द कर देगा,
तारीख निकलती जा रही है मियाद-ए-इश्क़ की,
फिर महबूब भी मुस्कुराना बन्द कर देगा,
‘दवे’ ये हालात एक से नहीं रहते,कोई समझता क्यों नही,
आज दिलकश है,कल दिल लुभाना बन्द कर देगा।
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सब कुछ कह दिया और कुछ कह भी न पाए,
डूब भी सके नहीं, न ही बह पाए,
अल्फाज़ कम पड़ गए या प्यार ज्यादा था,
या उनसे मुलाकात का ये बहाना था,
अब देखते है इश्क़ का अंजाम क्या होगा,
नाम तो है नहीं, ‘दवे’ बदनाम क्या होगा।
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