इश्क़ – ए- करम
12 /4/ 17
वार -बुधवार
विधा -गजल
काफिया-आते
रदीफ़-रहे हम
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इश्क़-ए-करम निभाते रहे हम
तेरे हिज्र में मुस्कुराते रहे हम
नजर जो मिली थी नजर से
वो नजर अब झुकाते रहे हम
दर्द-ए-दिल बयां करे भी कैसे
ये सोच मुस्कुराते रहे हम
उलझे हो तुम खुद में ही इतना
नश्तर-ए-जुदाई चुभाते रहे हम
सोचा संध्या न चाहे तुझे फिर
तेरे इश्क़ में गुनगुनाते रहे हम ।।
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✍संध्या चतुर्वेदी