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26 Feb 2021 · 1 min read

इश्क़ अपना सफ़र तय यूँ करता रहा

212 + 212 + 212 + 212
कोई सपना महब्बत का बुनता रहा
इश्क़ अपना सफ़र तय यूँ करता रहा

तुम परी हो मुझे ये यक़ीं हो चला
दिल की जन्नत से जब मैं गुज़रता रहा

यूँ मिले तुम मुझे बन गए ज़िन्दगी
जी में उल्फ़त का मौसम निखरता रहा

तुमको बरसों बरस चुपके देखा किये
बे-वज़ह मैं ज़माने से डरता रहा

तुम वहाँ रात दिन खुद में सिमटे रहे
मैं यहाँ अजनबी डर से लड़ता रहा

दिल के अहसास कैसे बयाँ मैं करूँ
टूटकर अपने डर में बिखरता रहा

3 Likes · 2 Comments · 410 Views
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