इश्तहार (हास्य-व्यंग्य)
इश्तहार
देश के नामी गिरामी
अखबारों में,
सुर्खियों से छपी ये खबर
इश्तहार टंगे,हर दीवारों पे।
कि-
अति सुशोभित,साजसज्जित,
कुर्सी खाली है एक दिल्ली की।
सर्वसाधारण के लिये नहीं,
यह सुरक्षित है उनके लिए
जिनके पास सपने हो शेखचिल्ली सी।
जी हाँ, आवश्यकता है
एक अदद होनहार मंत्री की
जो अपनी पायंचा ऐंठ सके
और कुर्सीपर बैठ सके
चिपकने की कला में हो माहिर
और तिजोरी के तह तक पैठ सके।
दे सके जो कोरा भाषण
कर सके नित नव उद्घाटन
माहिर हो खरीद-फ़रोख्त में
शातिर हो वोटों के बन्दोबस्त में
पहन सके अचकन पजामा
और सिरपर मौसम मुताबिक टोपियाँ।
पंच सितारा होटलों में करे ड्रामा
मोहन बन,बीच गोपियाँ।
यह एक आज़ाद मुल्क है,
इसलिये आवेदन का फ्री शुल्क है
जाने माने विशेषणो से भरपूर
महानुभावों से है नम्र निवेदन।
यदि आप उपर्युक्त गुणों
या इससे भी अधिक के हैं स्वामी
सीट कम है,
शीघ्र भेजिए आवेदन।
-©नवल किशोर सिंह