इश्क_ए_बनारस
इश्क_ए_बनारस
उसे जींस टीशर्ट पसंद था,
मै सोचता था वो बनारसी साड़ी पहने कभी ।
वो फ्रेंच टोस्ट और कॉफी पे मरती थी,
और मैं अस्सीघाट वाली अदरक की चाय पे।
वो पिज्जा बर्गर पर जान देती थी
और मै बनारसी काचौड़ी जलेबी का दीवाना था।
उसे नाइट क्लब पसंद थे,
मुझे दशाश्वमेध की गंगा आरती।
शांत लोग मरे हुए लगते थे उसे,
मुझे घाट पर शांत बैठकर उसे सुनना पसंद था।
लेखक बोरिंग लगते थे उसे,
पर मुझे मिनटों देखा करती जब मैं पंचगंगा घाट पर बैठे लिखता था ।
वो न्यूयॉर्क के टाइम्स स्कवायर, इस्तांबुल के ग्रैंड बाजार में शॉपिंग के सपने देखती थी,
मैं BHU लंका गोदवलिया सीगरा के भीड़ में खोना चाहता था।
राजघाट पुल पर खड़े हो कर सूरज डूबना देखना चाहता था।
उसकी बातों में महँगे महंगे शहर थे,
और मेरी तो काशी में ही पुरी दुनिया थी ।
न मैंने उसे बदलना चाहा न उसने मुझे।
एक अरसा हुआ दोनों को रिश्ते से आगे बढ़े।
कुछ दिन पहले उनके साथ रहने वाली एक दोस्त से पता चला,
वो अब शांत रहने लगी है,
लिखने लगी है,
बनारसी साड़ी भी पहनने लगी है ,
दशाश्वमेध घाट की आरती भी देखने लगी है ।
बहुत अंधेरे तक घाट पर बैठी रहती है।
अब वो गोदवलिया, लंका, सिगरा की शापिंग करती है।
सुबह सुबह गल्ली में भागती है काचौड़ी और जलेबी खाने को।
आधी रात को अचानक से उनका मन
अब चाय पीने को करता है।