इश्क
एक गजल और-
कब लगा है बेवफा का दाग ये दिलदार पर,
संगदिल है ये जमाना दाग देता प्यार पर॥
डूबती नौका नहीं कोशे समंदर को कभी,
दोष लगता है हमेशा फर्ज का पतवार पर॥
इश्क की है रस्म ही ये मांगता कुछ खूनहै,
नग्न पैरों से चलाता है सदा तलवार पर॥
कब झुका है इश्क सहरा या बहारों में कहीं
दे हुकूमत थोप जब चाहे किसी दरबार पर॥
चैन आता ही नहीं है पुष्प को इसके बिना,
है सगल मेरा लिखूं मैं खूब सारा प्यार पर॥
पुष्प ठाकुर