इश्क
********* इश्क *********
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ये इश्क छुपाये नहीं छुपता है,
किसी के रोके नहीं रुकता है।
दरिया की गहराई सा गहरा,
अथाह सागर कम पड़ता है।
लहर-लहर लहराए है जाता,
हवा के वेग से तेज चलता है।
भीनी खुश्बूओं से हरा-भरा,
फूल सा रहे सदा महकता है।
शीत रातों में नींद कोसों दूर,
पल-पल आशिक मरता है।
दर्द ए जुदा ई जीने भी न दे,
इश्क़िया रोग जब लगता है।
प्रिय की आस में मनसीरत,
मुश्किल में लम्हा कटता है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)