इश्क
इश्क एक बेइलाज बीमारी है,
जिसमें ना दवा ना दुआ काम आया,
पहली नजर में महसूस जो हुई,
दिमाग भी जिसे रोक न पाया।
तेरी अश्कों से छूटे तीर ने,
मेरे दिल को निशाना बना दिया,
इश्क तो कर ली हमने,
अंजाम का कोई फिक्र ना कर पाया।
तेरी बेहतरी के लिए हर चोट सहे,
समझ में ना कुछ आया था,
जब तुमने भी हां कहा,
तो लगा जैसे सारी खुशी मिल गई।
खुदा बना दिया मैंने उसको,
उसकी एक बात टाल ना सका,
पछतावा तो इस बात पर हुआ,
खुदा कभी किसी एक का ना होता।
जन्नत की सारी खुशियां,
तेरे आंगन में बिछा दी,
पर क्या पता था इस दिल को,
चोट लगना तो अभी बाकी है।
चोट भी ऐसी लगी दिल पर,
जिस पर मरहम भी ना कर सका,
तुझे याद करके आज भी,
एकांत में रोता रहता हूं।
इश्क भी क्या कमबख्त होती है,
कभी खुशी तो कभी गम देती है,
दुनिया का बेहतरीन अनुभव है इश्क,
लोग जानते हैं अंजाम क्या होगा,
फिर भी इश्क करने से ना चूकते हैं।