इश्क बेहिसाब कीजिए
कभी तो इश्क आप भी यूं बेहिसाब कीजिए।
जिस्म से जरा सा दूर अपना हिजाब कीजिए।
फरमा रहा हूं शौक से बा-अदब मैं दिल्लगी,
चेहरा दिखा के हूर का उसे बेनकाब कीजिए।
….कभी तो इश्क आप भी यूं बेहिसाब कीजिए।
कब तलक यूंही देखता मैं तुम्हे रहूं ख्यालों में,
दीदार दे के चांद का मुझे आफताब कीजिए।
हो रहा मुश्किल बड़ा यूं दिल में छुपाएं रखना,
लेकर मुझे आगोश में सच मेरा ख्वाब कीजिए।
….कभी तो इश्क आप भी यूं बेहिसाब कीजिए।
मशहूर मर्ज ए इश्क है बीमार तेरे आशिक का,
आके कभी तो प्यार से दिलका इलाज कीजिए।
रह न जाए कुछ अधूरी तुझसे मिलन की आरजू,
इश्क का इजहार कर पूरा रिवाज कीजिए।
…..कभी तो इश्क आप भी यूं बेहिसाब कीजिए।
@साहित्य गौरव