इश्क बाल औ कंघी
बेतरतीब, बेमुरव्वत, बिखरे बाल
बेमक़सद बासी जीवन सा हाल
ज्यों कंधी का हो ग्रह प्रवेश
संवर संवर जाए हर बाल विशेष
अलहड मस्ती का परिचायक
केश अकेला बस लोफर नायक
कंधी जब अपनी बांह में ले जाए
विन्यासों की झडी लगाए
बेफिक्री का कुछ आलम ऐसा
हवा दिशा सब उडते जाए
ठौर ठहर पाए वो झट से
कंधी जब जीवन में आए
बिन कंधी जमे ना जुल्फे
बिन उसके ना आसन पाए
उसके बिन कब पूरा जीवन
कंधी भी फिर क्या जी पाए