‘कई बार प्रेम क्यों ?’
प्रेम दुबारा क्या तिबारा चौबारा भी हो जाता है। पर तब जब वो अधूरा मर जाता है या मार दिया जाता है। रूह या आत्मा भटकती रहती है एक ही शरीर में रहती है फिर भी भटकती रहती है। क्योंकि जब तक शरीर ठीक ठाक रहता है तब तक आत्मा उसे नहीं छोड़ती। पर प्रेम की पूर्णता के लिए वो भटकती है जब तक उसे वास्तविक प्रेम नहीं मिल जाता। जब उसे सच्चा प्रेम मिल जाता है तब वो तृप्त होकर भटकना बंद कर देती है। कुछ को तो उम्रभर भटकना पड़ता है बल्कि मृत्यु के बाद भी। वास्तविक प्रेम तो एक ही बार होता है। दुबारा तिबारा इश्क का अर्थ है रूह को उसके मुताबिक रूह नहीं मिल रही।
जैसे हम घर का बाहरी रूप रंग देखकर पसंद तो कर लेते हैं पर जब उसके अंदर प्रवेश करते हैं तो अगर हमें वह अपने अनुरूप नहीं लगता तो हम दूसरे की तलाश में निकल पड़ते हैं।ऐसे ही दो आत्मा जब गुणधर्म में विपरीत होती हैं तो उनका मेल नहीं हो पाता और वो फिर भटकने लग जाती हैं। आत्मा को रहने के लिए शरीर रूपी स्थान की आवश्यकता होती है। जिनकी आत्मा या रूहें एकाकार हो जाती हैं वो दूर दूर रहकर भी सूक्ष्म रूप से एक दूसरे से जुड़ी रहती हैं। उन्हें न शरीर की आवश्यकता होती है न बंधन की । वे एक दूसरे के शरीर में सूक्ष्म रूप में प्रवेश करती रहती हैं।यही प्रेम है। प्रेम बदलता नहीं है । जो बदल गया वो तलाश मात्र है उसे प्रेम में मत गिनिए।
ऐसे स्त्री पुरुष से मैं परिचित हूँ युवावस्था में उन्हें एक दूसरे से प्रेम हो गया। माता-पिता को विवाह मंजूर नहीं था इसलिए उन दोनों ने आजीवन अविवाहित रहकर प्रेमी प्रेमिका के रूप में रहने का निर्णय लिया। एक हरिद्वार और एक दिल्ली। किसी अन्य से भी विवाह नहीं किया। 20 साल पहले की बात है तब वो अधेड़ उम्र के थे। दो चार साल में वे एक दूसरे से मिल लेते थे । बस दोनों अपनी अपनी जॉब करते थे । बीमारी में एक दूसरे की सेवा करने अवश्य पहुचते। ऐसे ही अलग रहकर जीवन बिता दिया उन्होंने।
(ये विचार मेरे अपने हैं)
-Gn