इश्क की फजा
चल फिर से तेरे इश्क की फजा बहाते हैं,
सितम तुम करती रहो हम खुद को आजमाते हैं।
मोहब्बत में वफाई जरूरी ना लगी जिनको,
जफा के दर्द पर क्यों इतना तिलमिलाते हैं।।
बिछड़ के जाना था तो हमसे एक बार कह देते ,
बेवजह क्यों हर इल्जाम-ए-सितम हम पर ही लगाते हैं।
मैं वह मिट्टी हूं जो दरिया के साथ बहता रहा,
दरिया ही है जो हमको किनारे पे छोड़ जाते हैं।।
चल फिर से तेरे इश्क की फजा बहाते हैं।
सितम तुम करते रहो हम खुद को आजमाते हैं।।
उसको अच्छा नहीं लगता वादों पर मर मिटने वाले,
खुश तो होगी उनसे जो वादे तोड़ जाते हैं ,
मैं खुश हूं भूल कर उसको,कौन मानेगा ?
जब इस दौर में जुबां से ज्यादा आंखें सब बताते हैं।।
चल फिर से तेरे इश्क की फजा बहाते हैं,
सितम तुम करते रहो हम खुद को आजमाते हैं।।
खुद को जब देखता हूं सदियों की आंखों से,
नाम तेरा आते ही खुद ब खुद यह टिमटिमाते हैं।
किस लफ्जों से बयां करूं मैं अपनी तन्हाई,
एक तेरे याद के सिवा सभी हमको छोड़ जाते हैं।।
चल फिर से तेरे इश्क की फजा बहाते हैं,
सितम तुम करती रहो हम खुद को आजमाते हैं।।
guru gaurav