इश्क की अदा
तेरी अदाओं में इश्क का मोहताज है ,,,
वो बला क्या जाने जो नजरो का अंदाज है ।
कम्प कम्पी चादर में ठंडी हवा का झोंका कहा ?
रोम रोम में तड़पन, दिल के अंदर का तकाज है ।
यादो के झरोखे में कुछ अजनबी बाते ,दौड़ रही
,,,
जो नयन से कुछ मोती सी दर्द भरी बून्द जो गिरने का झार है ।
ये कांटो का पहाड़ मुझे कह रहा है
चढ़ तो सही यह रिश्ता है चलने का
पैरों में छाले का औजार है ।
तू मंजिल तयः कर इस जन्म का ,,
जो स्नेह बंधन का सूत्र धार है।
तेरी बातो में, वो प्यार का समंदर,,
जिसमे अनगिनत नदियो की छलकती धार है ।
वो यौवन सावन का मौसम
जो रिमझीम भीगती छतरी की मीठासी लार है ।
तेरे दिलो दिमाक में वो धुरंधर हलचल जो सड़क पर अनचाही चलती कार है ।
सुहानी शाम में वो काना जी की वंशी की तान ,,
जो गले में बंधी गौ की गुजंती घण्टियाँ, गली गली में शाम है।
✍ ।प्रवीण शर्मा ताल
जिला रतलाम
स्वरचित कविता
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दिनाक 2/4/2018
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