इश्क करना
सिर्फ नारी का ज़िस्म ही नहीं रूह भी छू सको तो इश्क़ करना…
नारी के कपड़े उतारना वफ़ा नहीं नारी की लाज बचा सको तो इश्क करना…
हज़ारों की भीड़ में हक़ से नारी का हाथ थाम सको तो इश्क़ करना…
वो मेरी है नहीं मैं उसका हूं कह सको तो इश्क़ करना…
उसके बाद नारी की यादों में सवार सको तो इश्क़ करना…
दिला सको हक अधिकार जमाने से तो इश्क करना…
निभा सको रिश्ता मरते दम तक तो इश्क करना
मत खेलना किसी की भावनाओं से तो इश्क करना…
वरना नारी से इश्क़ तो सब करते है,,
नारी को खोकर भी नारी को बेवफा न कह सको तो इश्क़ करना…..