इश्क़ में
है नहीं ये रस्ता आसान
अपनी ज़िंदगी को मेहमान रखते हैं
जो बदले में कुछ नहीं चाहते
वही इश्क़ को सँभालकर रखते है
है नहीं ये कला उनकी
वो सब जानते हैं
जो होते हैं इश्क़ में
वो सिर्फ़ इश्क़ जानते हैं
आग से जलने का डर नहीं
ठंड में जमने का कोई भय नहीं
है इतनी ताक़त इश्क़ में
ज़माने की नज़रों का भय नहीं
किसी के लिए नफ़रत नहीं
महबूब के नयनों में ब्रह्मांड वहीं
देता है आनंद ऐसा ये इश्क़
जो मिलता नहीं है और कहीं
हो अगर महबूब सामने तो
कुछ और नहीं चाहिए उसे
बरसों लगे जिसे ढूँढने में
वो सुकून मिल जाता है उसे
मैं नहीं जानता क्या चाहिए तुम्हें
हमारी तो चाहतें कभी ख़त्म नहीं होती
जो है इश्क़ में उसे तो बस महबूब चाहिए
महबूब को देखे बिन उसकी आँखें नहीं सोती।