इश्क़ बुरा है ।
माना, कि इंतज़ार नहीं तुझको, मेरे एक पल का,
साथ ना चाहे तू, मेरे संग अपने कल का,
पर करेगी क्या उस मोहब्बत का, जो दिल में है तेरे मेरे ही लिए,
पर करेगी क्या उस रवायत का, जो जुबां पे सबके तेरे ही लिए ।
वफ़ा ना कर सका, तो बदला तूने आशिक़,
सांसों में बसी है, धड़कन तू मेरी, इससे है तो ना वाक़िफ,
मुजरा करवाया मेरी चाहत का,
बदला फिर रंग तूने, हुई एहसास जब मेरी आहट का ।
था दीवाना मैं तेरा, अब नफरत का जूनन है,
फरेब किया जो तूने, मिली दुनिया को सुकून है,
मेरी चाहत थी तू, तेरा था कोई और,
उसमें पली है तू, जिसको कहते बेईमानों का दौर ।
खोलूं गर राज़, शर्मा तू जाएगी,
गर लिख दूं सब आज, घबरा तू जाएगी,
मौका मिलेगा तो दोहराएगी छल,
तेरा क्या भरोसा, आज है किसी की, किसी और की तू कल ।
उम्र से ज्यादा तेरे आशिक़ तैयार,
इसका काटा, उसका काटा, करके बहाने हज़ार,
अब तो फ़र्क ही ना पड़ता, तू जाए कहीं भी,
हक जताए कहीं भी, रातें बिताए कहीं भी ।
सपने के अपने थे, हकीकत के बेवफा,
दिया क्यूं तुझको उसने, रब से हूं इसलिए खफ़ा,
मन नहीं है भरता क्या, जो किया ज़िस्म का सौदा,
देख वफ़ा ये तेरी, अब तो मोहबात से तौबा-तौबा ।।
-Nikhil Mishra