इश्क़ पर लिखे अशआर
ये मोहब्बत का काम होता है ।
इश्क़ कब बार-बार होता है ।।
किसी बंदिश में बंध नहीं सकता ।
इश्क़ होता है बे’पनाह खुद में ।।
ढूंढ लो चाहें जितनी गहराई ।
इश्क़ में ज़िंदगी नहीं मिलती ।
उम्र फिर मायने नहीं रखती ।
इश्क़ शिद्दत से गर किया जाए ।।
इश्क़ माना कि बस की बात नहीं ।
क्या मोहब्बत भी कर नहीं सकते ।।
दर्द शिद्दत को पार कर आया ।
इश्क़ रोया जो आज सीने में ।।
इश्क़ शायद इसी को कहते हैं ।
खुद को खुद का पता नहीं होना ।।
ज़िंदगी खिल के मुस्कुराती है ।
इश्क़ देता है रंग चाहत के ।।
जिस्म की है तलब मोहब्बत को ।
इश्क़ रूह से मज़ाक लगता है ।।
भूल जाएं मेयार भी अपना ।
इश्क़ ऐसा हम कर नहीं सकते ।।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद