इश्क़ की भूल
इश्क़ की भूल में ख़ाक में
खुद को मिला बैठा,
नश्तर लाखो जैसे दिल पर
अपने चला बैठा।
काश के समझी होती तूने
भी मोहब्बत मेरी,
खातिर तेरे मैं खुद को ही
भुला बैठा।
तूने समझा ही नहीं दिल के
एहसासों को,
इक मैं था के सारे जमाने को
हिला बैठा।
कैसी ये मोहब्बत है कि हर
रोज मरा करता हूँ,
ज़िंदगी की चाह में मौत को
बुला बैठा।
लगा कि चाँद से रोशन कर
लिया घर अपना,
क्या पता था चांदनी से घर
अपना जला बैठा।
कांटो की फितरत रही जख्म
दे कर जाना,
मैं फूलों से देखो अपना दिल
छीला बैठा।
अच्छे को भी तुमने बुरा ही
देखा हमेशा,
आईना दिखा दिया तो दिल
तेरा तिलमिला बैठा।
गीले शिकवों के सिवा कुछ
बाकी नहीं तुझ में,
मोहब्बत से खाली है तू यकीं
खुद को दिला बैठा।
खुशी मिलती नहीं है अब तो
मोहब्बत के नाम से,
जाम ये ज़हर का बहुत खुद
को पिला बैठा।
सीमा शर्मा