*इश्क़ की आरज़ू*
माना की हूरों की हूर है वो
और ये भी सच है कि
रहती अभी मुझसे दूर है वो
है नहीं उसको परवाह मेरे दिल की
जाने किस नशे में चूर है वो
हूरें तो और भी लाखों है इस ज़मीं पर
इस बात से अनजान तो नहीं है वो
शायद इश्क़ की गली से नहीं गुज़रा कभी
इसीलिए दिल के दर्द से अनजान है वो
अपनों का दिल नहीं तोड़ते
ये बात भी तो जानता नहीं है वो
जानता है अगर वो ये बात
मुझे अपना नहीं समझता है वो
जानकर अनजान बनता है मगरूर है वो
लेकिन जैसा भी है मेरी तो ज़िंदगी है वो
आज नहीं तो कल उसे मेरा होना ही है
इतनी सी बात समझता क्यों नहीं है वो
नहीं चाहता उसे भी मिले दर्द दिल का
मैं तो चाहता हूं हमेशा ख़ुश रहे वो
सुना है कि दर्द देने वाले को भी दर्द मिलता है
तभी चाहता हूं अब जल्दी मान जाए वो
फिर कहेगा तुम पहले क्यों नहीं मिले
देखो अभी नखरे दिखा रहा है वो
मैं तो उसे खुश देखना चाहता हूं उम्रभर
शायद मुझपर अभी ऐतबार नहीं कर पा रहा है वो
बढ़ रही है मेरे दिल में इश्क़ की जो अगन
आकर दिल में मेरे अब तो उसे बुझा जाए वो
उलझने बढ़ गई है बहुत ज़िंदगी में मेरी
बसकर मेरे दिल में मेरी जिंदगी को संवार जाए वो।