इश्क़—ए—काशी
आसमान की धुंध, अरुणोदय की लाली,
गंगा घाट की सोपाने, अनवरत निश्चल बहती गंगा,
मंदिर की घंटिका, नाविक की पतवार,
चहकती चिड़ियों की नाद, कामुक चंचल हवां,
इश्क़—ए—काशी हैं।
बाबा विश्वनाथ की आस्था, मां अन्नपूर्णा का आशीर्वाद,
अस्सी घाट की शाम, बनारस का पान,
कुल्हड़ चाय की चुस्की, समृद्ध संस्कृति का प्रतीक बनारसी साड़ी,
बनारस की बेतरतीब गलियां, गलियों में गूंजता दर्द का नग़मा,
इश्क़—ए—काशी हैं।
आकाशीय मेहमानों का बसेरा, सैलानियों की गंगा सैर,
खुशनुमा मौसम का आनंद, साइबेरियन की लहरों पर तैर,
संक्रांति दिवस का गंगा स्नान, आसमान में पतंगों की उड़ान,
फोटोग्राफी का शौक, रंग–बिरंगी रोशनियों से सुसज्जित घाटों की रौनक,
इश्क़—ए—काशी हैं।
देव दीपावली की निराली छटा, संध्या की गंगा आरती,
दशाश्वमेध घाट पर सर्वकालिक जीवन की नैया, धर्म एवं संस्कृति का परचम,
मणिकर्णिका; हरिश्चंद्र घाट पर मृत्यु की शैय्या, भौतिकत्ता एवं आध्यात्मिकता का प्रतीक,
संत कबीर; रविदास की नगरी, सर्वविधा की राजधानी,
इश्क़—ए—काशी हैं।
“स्वरचित एवं मौलिक”
स्तुति..