इल्म
जलती रही मशाले
महजे इक्लाख होने को
उठी कुछ आवाज़ों में
मैंने बगावत नही देखी
कहते हो कोकिल,
बदला है हिंदुस्ता
ठहरी कुछ आंखों में
मैंने आजादी नही देखी
कहते हो,
जलाओगे आलिम का दीया
दंगो की लपटों में छूटी
इल्म की दुकां नही देखी
जलती रही मशाले
महजे इक्लाख होने को
उठी कुछ आवाज़ों में
मैंने बगावत नही देखी
कहते हो कोकिल,
बदला है हिंदुस्ता
ठहरी कुछ आंखों में
मैंने आजादी नही देखी
कहते हो,
जलाओगे आलिम का दीया
दंगो की लपटों में छूटी
इल्म की दुकां नही देखी