इल्म कुछ ऐसा दे
इल्म कुछ ऐसा दे मेरे मालिक कि काम आऊं सबों के
हौंसला भी कुछ ऐसा दे कि गंगा जमुनो सदा नाज करे.
आधे -रास्ते पर न रुक जाएं किसी मुसाफिर के कदम
शौक मंजिल के पाने का हो तो थकान भी नाज करे .
वह नजर मुझको दे कि करूं कद्र हरेक की मजहब का
वह मुहब्बत जिगर में दे कि जमीं-आसमां नाज करे .
दीप से दीप जलाएं कि चमक उठे मेरा हिंदुस्तान
ऐसी खूबी दे मेरे मालिक कि वतन मुझ पर नाज करे।
ऐसा मुकद्दर दे मुझे यहां इस शहर में भेजने वाले
कि दर -दर न भटकूं, दर -दर पर मुझे सलाम मिले .
सबकी आबरू बचें ,सबकी इज्जत बचें, ईमान बचें
सलामत हो सबकी जिंदगी कि अमन- चैन नाज करे.
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मौलिक रचना घनश्याम पोद्दार
मुंगेर