इल्तिजा
खूबसूरत यादौं के सहारे कट जायेगी ये शाम!
दिल-ओ-दिवार पर लिख दिया- उसका नाम!!
मेरे महबूब की बस इतनी सी ही इल्तिजा थी –
बाद उसके कोई कभी न करे मुहब्बत बदनाम!!
मैने ताउम् इस उज्र को बच्चे की मानिंद पाला,
उम्र की दहलीज़ ये सोचा, हो जाऊं न गुमनाम!!
क्यों करके मुहब्बत बदनामी से इस कदर डरै ?
इश्क औ मुश्क कब छुपाए छुपे लगे हैं इल्जाम!!