// इल्तिजा //
मैं जानता हूं कि ,
तुम मुझे एक दिन ,
हमेशा-हमेशा के लिए,
अकेला छोड़ कर चली जाओगी…!
इंतजार कर रहा है तुम्हारा,
एक बिखरा सा गुलशन,
इस आस में कि तुम उसे,
अपने हाथों से सजाओगी…!
इसलिए ,
तुमसे ऐ मेरे “मन”
बस यही इल्तिजा है मेरी
जब तक है संग तुम्हारा,
मिल जाए मुझे इतनी चाहत तेरी…!
कि तन्हा जिंदगी से
लड़ते-लड़ते जहां,
थक जाए मेरे हौसलें,
टूट कर बिखर जाए ,
दिल के सारे अरमान,
सपने और इरादे….
संभल-संभल कर,
मैं फिर गिर जाऊं
सुनने वाला कोई ना हो ,
मेरी तड़पती आवाजें ,
कराहती फरियादें…!
वहीं पर मेरे लिए
जीने का सहारा ,
मरने का बहाना
बन जाए , तुम्हारी यादें ,
तुम्हारी यादें,तुम्हारी यादें.……..!
चिन्ता नेताम “मन”
डोंगरगांव ( छत्तीसगढ़)