“इल्तिजा ए इश्क़”
“इल्तिजा ए इश्क़”
वो नज़रें मिलाना, वो नज़रें चुराकर ॥
वो शर्माना फिर उनका गर्दन झुकाकर ॥
वो अपनी अदाओं से पागल बनाना ॥
इशारे इशारे मैं हमको बुलाकर ॥
ये क़ातिल अदाएं, जो दीवाना कर दें ॥
कहाँ चल दिए , हम को पागल बना कर ॥
है हसरत बस इतनी की हो जाओ मेरे ॥
रखूं मैं तुम्हे अपने दिल में बसाकर ॥
जो शरमा के कहते हो, बातों में अपनी ॥
ये अल्फ़ाज़ कैसे, लबों को दबाकर ॥
मैं रहता हूँ ग़मग़ीं के महलों की रानी ॥
रहेगी भला क्यों, मेरे घर मैं आकर ॥
ये प्यारी सी शब् वो ठंडी हवाएं ॥
ये कहते हो जाऊं करोगे क्या जाकर ॥
तुम्हे चाहिए क्या कहो भी तो आखिर ॥
मैं दूँ चाँद तारे अभी तुम को लाकर ॥
तेरा प्यारा चेहरा है टुकड़ा क़मर का ॥
मैं “सरफ़राज़” हो जाऊंगा तुम को पाकर ॥
सैयद सरफ़राज़ अली “सरफ़राज़”
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