इल्ज़ाम
अब अक्सर
नींद नही आती है रातों में,
बहुत परेशान और उलझा हुआ सा
महसूस करता हूँ खुद को।
इस रिश्ते-नाते के चक्रव्यूह में,
ठगा-ठगा सा महसूस करता हूँ मैं
इतनी शिद्दत और समर्पण के बावजूद
क्यों मैं उस आखिरी छोर पर पहुँच जाता हूँ
जहाँ से रिश्तों को आगे बढ़ाने का
कोई रास्ता ही नहीं बचता…
मेरा रिश्तों को निस्वार्थ तरजीह देना
इस स्वार्थी परिवेश में
मुझ पर ही भारी पड़ जाता है,
किसी की भी गलती पर अविलम्ब
झुक कर रिश्तों को थाम लेने का गुण
मुझे हर बार गिरा देता है,
क्योंकि लोगों की मानसिकता है
झुकता वहीं है जो गलत होता है,
और थोप दिए जाते हैं सारे इल्ज़ाम मुझ पर,
जिससे हर बार हो जाता हूँ मैं गलत।