कलेक्टर से भेंट
कलेक्टर से भेंट
नये कलेक्टर ने कार्यभार ग्रहण करने के तुरंत बाद ही आगंतुकों से भेंट करने का समय सुबह दस से ग्यारह बजे को बदलकर दोपहर को दो से तीन बजे तक कराया। इस बदलाव के संबंध में उनका तर्क था कि दूरदराज इलाकों से लोग उनसे मिलने आते हैं। अक्सर बस या ट्रेन लेट होने के कारण वे समय पर नहीं पहुंच पाते। मुलाकात के लिए दोपहर का समय नियत किए जाने से उन लोगों को थोड़ी सुविधा होगी।
तत्काल साहब के आदेश का पालन हुआ।
कलेक्टर साहब से मिलने के इच्छुक लोगों की पर्ची दोपहर डेढ़ बजे तक उनके निज सहायक द्वारा जमा करा लिया जाता।
ठीक पौने दो बजे तक वह जमा पर्ची कलेक्टर साहब की टेबल पर रख दिया जाता। वे स्वयं एक-एक पर्ची को पढ़ते और उस पर सीरियल नंबर डाल देते। उनका निज सहायक उसी क्रम से मुलाकातियों को कलेक्टर साहब के चैंबर में भेजता जाता।
निज सहायक यह देखकर चकित रह जाता कि बड़े-बड़े नेताओं और अधिकारियों की बजाय कलेक्टर साहब दूरदराज के क्षेत्रों से आए हुए ग्रामीणों से पहले मुलाकात करते हैं।
एक दिन साहब का मूड अच्छा देखकर उसने कलेक्टर साहब से इसका कारण पूछ ही लिया। तब साहब ने बताया, “गांव-देहात के साधारण और दीन-हीन लोग बड़ी मुश्किल से यहां तक पहुंच पाते हैं। उन्हें जल्दी ही वापस भी जाना होता है। नेता, मंत्री और अधिकारियों से बातचीत अक्सर लंबी चलती है, जबकि ग्रामीण इलाकों से आए लोगों से भेंट करने में महज दो-तीन मिनट ही लगते हैं। इसलिए पहले ग्रामीणों से भेंट करता हूं। नेता, मंत्री और अधिकारियों को आवश्यकतानुसार देर तक भी रोका जा सकता है, लेकिन दूरदराज से आए हुए ग्रामीणों को यूं ही नहीं रोक सकते।”
कलेक्टर साहब की बात सुनकर निज सहायक के मन में उनके प्रति इज्ज़त और भी बढ़ गई।
– डॉ प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़