इमरोज
मैं भी चाहती हूँ,
तुम इमरोज़ बनो,
मेरे लिये,
मैं अम्रता नहीं बनूंगी पर,
कभी नहीं उकेरा जाएगा,
तुम्हारी पीठ पर,
किसी साहिर का नाम,
तुम मेरे इमरोज़ हो,
या प्रीतम,
नाम तुम्हारे कितने भी रखलूँ,
पर मेरी उंगलियां तुम्हें ही उकेरेंगीं
हमेशा ,हर जीवन में।