इन राहों में सफर करते है, यादों के शिकारे।
इन राहों में सफर करते है, यादों के शिकारे,
खामोश लम्हों में गूंजते हैं, जज्बातों के इकतारे।
पलभर के लिए भी सोच, जो तुझसे रिहा होती है,
आँखें नम होकर खुद करती हैं हमें ईशारे।
हवाएं लिपटकर यूँ हीं तो नहीं, अपनेपन का एहसास दिलाती हैं,
एक अरसे से सहेज रखे है इसने, हमारी मुस्कुराहटों के फ़व्वारे।
ना निकलाकर ऐ चाँद, ये इल्तजायें ज़हन की होती है,
गुम होने की ख्वाहिशों को, पूरा करते हैं अंधियारे।
कुछ वादे अधूरे सहमे से, कुछ बातें अधूरी ठिठकी सी,
कुछ निशान क़दमों के निःशब्द बह रहे अब भी, नीले सागर के किनारे।
एक तूफां पुराना गुजर चूका, एक तूफ़ान दरवाज़े पर रुका,
छुप जाएँ किसी कोने में या, अब हम बाहों को पसारे।
मिलने की अब कोई आस नहीं, बिछड़ने वाली रही बात नहीं,
यूँ हीं बेसबब लांघते जा रहे हैं हम, उम्र के ये गलियारे।
अक्स एक अनजाना सा, आईने में अब दिखता है,
ये रंग सारे तो तेरे हैं, जिससे शख़्सियत, खुद को है निखारे।
एक चिट्ठी अधूरी सी, कोरे लिफ़ाफ़े में कब से रो रही,
कि पता तेरा अब बता पाते नहीं, आसमां के ये सितारे।