इन्साफ
जुर्म की दहशत में पलता
कितना भी घना अँधेरा हो ,
बेईमानी की आग में पल पल
जलता हुआ सवेरा हो ,
शोले कितने भी भड़काए
नफ़रत की ज़हरीली हवाएं ,
मिट जाती सब काली रातें
इन्साफ का जब हतौड़ा हो ,
जुर्म की दहशत में पलता
कितना भी घना अँधेरा हो ,
बेईमानी की आग में पल पल
जलता हुआ सवेरा हो ,
शोले कितने भी भड़काए
नफ़रत की ज़हरीली हवाएं ,
मिट जाती सब काली रातें
इन्साफ का जब हतौड़ा हो ,