इन्द्र मेघ भेज दो
बड़ा प्रचण्ड ताप अंश में इसे न माप दीन का हुआ विलाप क्योंकि देह थी जली हुई
न पुष्प ही खिला न वृक्षपत्र ही हिला न काल में दया दिखी विनष्ट टूट के कली हुई
असीम वेदना विदग्ध मेदिनी सुना रही प्रतीत हो रही कि मर्त्य मूंग सी दली हुई
सुनो मही पुकारती पुकारते समस्त जीव इन्द्र मेघ भेज दो न ग्रीष्म ये भली हुई
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ