इन्द्रधनुष
तप तप कर धरती का
हृदय भी जब फटने लगा ।
आकाश में तब देवराज
इन्द्रधनुष तान उठे ।
फोड़े घड़े सब मेह के
तो नेह बरसने लगा ।
पी पी रस धार मधु
सब जीव, तरु संवरने लगे ।
धनुष की टंकार वो
थी प्रेम की अभिव्यञजना,
मानों धनुष उठा कर आज
पुरन्दर स्वयंवर साधेंगें ।
सज संवर सप्त रंगों से
बादलों की बारात ले
उतरेंगें आसमान से
धरती को ब्याहेंगे ।
इन्द्र धार इन्द्रधनुष
इह लोक में जब आएंगे ।
स्वर्गिक आनन्द जो
खुशियाँ, धन, ऐश्वर्य सब
सप्त रंग जीवन के,
सप्त स्वर, सौन्दर्य, राग;
बस इक धनुष टंकार से
धरा पर उतर आएंगे।
कर धरा का थाम वो
दायित्व भी सब थाम लेंगे ।
तब कहीं न अतिवृष्टि होगी
न कहीं सूखा पड़ेगा,
प्रकृति होगी जल,अन्न गर्भा
सब खेत लहलहाएंगे ।