इन्तेजार
इन्तेजार
तेरे
इन्तेजार
में मेरे
कितने बरस
बीत गये,,
मैं रोज आती हूँ ,
यहाँ इस बगीचे
में जब हम और
तुम कालेज के
दिनों में रोज
घूमे फिरे और
खूब हँसे थे।
इन खूबसूरत
बग़ीचे
की सीढ़ियों में,
बैठे थे।
और मेरा
अचानक पैर
सीढ़ियों से
फ़िसल
गया तब तुम्ही ने
कैसे मुझे अपनी
बाहों में संभाला
था,
मैं डर ही गई थी।
कि मैं कहि
गिर न
जाऊ
तुम्ही ने मुझे
सहारा
दिया था।
आज तुम कैसे
भूल गये
वादे कसमे सब
भूल कर विदेश
की गलियों में
घूम फिर मौज
मस्ती कर रहे हो।
मैं तुम्हारे
आने का
इन्तेजार इस
आज भी
बगीचे में
आकर
रोज करती हूँ।
मुझे यक़ीन है।
तूम एक दिन
जरूर
आओगे।
मुझे अपनी दुल्हन
बना कर अपने घर
ले जाओगे। राहुल
तुम्हारी रागिनी
तुम्हारा आंखरी
साँस तक इन्तेजार
करेगी।आज ही मेने
मेरे पिता से बोला है
शादी की बात चल रही
तभी मेने बापू से कहा
मुझे राहुल से ही ब्याह
करना है।तभी माँ ने मुझे
तुम्हारे आने के बाद
तुम्हारे माँ बापु से बात
केरेंगे कहा।तो मैं खुश
हो गयी।
दूसरे दिन एक दम
मेने राहुल को मेरी
और आते देख मानो ऐसा
लगा की मेरा बर्षो का इन्तेजार
खत्म हो गया।राहुल ने मुझे गले
लगया और फिर ने एक महीने बाद
शादी कर ली।
रचनाकार गायत्री सोनू जैन मंदसौर