इनायत
इनायत,अनुग्रह,सच्ची कृपा, उपकार,दया,मेहरबानी
हैं बहुत मुझपे,मेरे,तेरे कान्हा, नहीं तुमसा कोई सानी।
हुई जिसपे भी मेरे मोहन इनायत तेरी
तेरे भक्त,सखा, रिश्ते सब आबाद रहे।
बाग़बाँ सी खिली है ,जिंदगी ये दुआ से तेरी
महज़ सिमरन से ही मन उपवन आबाद रहे।
मन का पंछी खूब चहके सुनकर बांसुरी तेरीे
मैं बनूं बुलबुल गुलशन में बेशक तू सय्याद रहे।
क्या मिलूं तुमसे राधा रुक्मिणी या गोपी बन तेरी
मिलो जैसे भी मगर मिलन अपना,स्वच्छंदआज़ाद रहे।
कहे नीलम सुन न टूटे सखी कहीं मर्यादा तेरी।
क्या है रिश्ता भक्त भगवान का, ये भी याद रहे।
नीलम शर्मा