इनायत (ग़ज़ल)
ग़ज़ल
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मुझपे इनायत जो तेरी बनी रहे।
मेरे जीने की हसरत बनी रहे।
तेरी इबादत ही है करम अपना।
ये हमेशा मेरी आदत बनी रहे।
पाएं रूतबा-ए-शौहरत हम भी।
ग़र जहॉ में शराफत बनी रहे।
आदत हो मेरी बस चाह तेरी।
ये दुनिया मेरी जन्नत बनी रहे।
मेरी जां भी तुम तुम्ही मौला!
दिल पे तेरी हुकूमत बनी रहे।
ख़िदमत को तेरी मेरे-ए-खुदा।
जिस्म नुमा इमारत बनी रहे।
सरस़ब्ज़ रहे ये बग़िया यूंही।
जो तेरी हमपे रहमत बनी रहे।
सुधा भारद्वाज
विकासनगर उत्तराखण्ड