इनका क्या करें…?
जो दूसरों पर करते बेकार के कमेंट हैं
उनपे करो तो कहते ये नही डीसेंट है ,
खुद अपनी बदबूदार गिरेबाँँ में नही झाँकते हैं
दूसरे की सुगंधित गिरेबाँ भी हरदम आँकते हैं ,
आपको गरम भी तुरन्त पीने की सलाह देते हैं
अपना छाछ भी वो फूँक – फूँक कर पीते हैं ,
दूसरों की एक – एक बातों को याद रखते है
अपनी कही हर बात वो हमेशा भूला करते हैं ,
सामने हमारे बेहद हिमायती और सगे बनते हैं
मुड़ते ही तुरंत नफरत का खंजर घुसेड़ते हैं ,
ईश्वर तो सबकी चमड़ी का रंग अलग देते हैं
कुछ तो उसे भी गिरगिट की तरह बदल लेते हैं ,
बिना मतलब के वो किसी को नही पहचानते हैं
मतलब निकलने पर तो तलुये तक चाटते हैं ,
ज़बांं ऐसी की चाशनी भी मुँह छुपा लेती है
असर ऐसा की ज़हर को भी मात देती है ,
ऐसे लोग क्या हमें जीवन का अनुभव देते हैं
या इनसे हम जीवन भर का सबक लेते हैं ?
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 16/01/2020 )