इतिहास भाग : 04 महापंडित मैथिल ठाकुर टीकाराम
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वैद्यनाथ मंदिर के मठ उच्चैर्वे (मठप्रधान) की जो सूची अबतक प्राप्त है उस अनुसार 15वें मठप्रधान हैं ठाकुर टीकाराम ओझा। यह वो पद था जो मठ की धार्मिक व सामाजिक परंपराओं के निर्वाहन, प्रशासन व प्रबंधन हेतु जिम्मेदार था। इस पद पर अभी 27वें मठप्रधान नियुक्त हैं।
इस पद पर आसीन व्यक्ति का महाविद्वान होना आवश्यक था। धर्म, परंपरा, पूजा-पद्धति, ज्योतिष, वास्तु के साथ-साथ स्वाध्याय भी अनिवार्य था। ये संस्कृत के प्रकांड विद्वान भी होते थे। अर्थशास्त्र और राज व्यवस्था पर भी इनसे राजपुरुष परामर्श लेते थे मगर बाद में न्यायालयी मामलों में उलझ जाने के कारण यह परंपरा प्रभावित हुई। विशेषकर ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रभाव बढ़ने के बाद इस पद की गरिमा कम होती गई। अभिलेखों से जानकारी मिलती है कि वीरभूम के राजा तिलक चंद्र और उनके पिता चित्रसेन राय भी तत्कालीन मठप्रधान से राय लेते रहे।
एक भुक्त, ब्रह्मचर्य पालन, भूमि शयन, एक वस्त्र धारण जैसी परिपाटियों का निर्वहन इस पद पर आसीन व्यक्तियों के लिए अनिवार्य था। वर्णन मिलता है कि विवाह होना या न होना इस परिपाटी के अधीन कोई अर्हता नहीं थी। (इस प्रसंग पर कभी पुनः प्रकाश डालूंगा।)
टीकाराम जी के ‘ठाकुर’ लिखे जाने का प्रसंग वैद्यनाथ मंदिर के प्राचीन अभिलेखों से भी प्राप्त होता है। ठाकुर एक पदवी थी जो कर्मप्रधान थी। मिथिला में यह पद श्रेष्ठ पुरोहितों, न्यायिकों व महामहोपाध्याय के लिए शासन द्वारा तय की जाती थी।
मार्के की बात है कि इस वैद्यनाथ मंदिर में किसी भी जाति और संप्रदाय के लोगों का प्रवेश कभी वर्जित नहीं था। इसकी जानकारी यहाँ के तीर्थ पुरोहितों की यजमानी पंजी से भी पता चलता है। ईसाई इतिहासकार जेडी बेग़लर से पूर्व भी पेंटर विलियम होजेज व कई प्रशासकों का विजिट भी अभिलेखों में दर्ज है। इसी तरह अन्य मतावलंबियों के प्रवेश पर भी पाबंदी नहीं होने की जानकारी मिलती है।
15वीं शताब्दी से यहां जिन मठप्रधानों की सूची प्राप्त होती है ये निम्नलिखित हैं –
मुकुंद (15वीं सदी)
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जुदन
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मुकुंद
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चीकू
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रघुनाथ (1596 ई.)
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चीकू
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मानू
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वामदेव (1626 तक)
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खेमकरण
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सदानंद
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चंद्रमोहन
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रत्नपाणि (1692 ई.)
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जयनारायण (1693 ई.)
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यदुनंदन (1751 ई.)
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#टीकाराम (1762 ई. में गणेश मंदिर निर्माण)
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देवकीनंदन (1762 ई.)
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रामदत्त (न्यायालय से अयोग्य घोषित)
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नारायण दत्त (1782 ई.)
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राम दत्त (1791-93)
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आनंद दत्त (1794 ई.)
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परमानंद (1820 ई.)
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सर्वानंद (1823 ई.)
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ईश्वरीनंद (1826 ई.)
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पूर्णानंद
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शैलजानंद (1890 ई.)
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त्रिपुरानंद (X)
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उमेशानंद (1906 ई.)
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भवप्रीतानंद [महाकवि]
(1928 से 1970 तक)
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अजितानंद (6 जुलाई 2017 से 22 मई 2018 तक)
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गुलाबनंद (3 जून 2018 से)
विदित हो कि वर्तमान सरदार पंडा गुलाबनंद ओझा के पिताजी अजितानंद ओझा की नियुक्ति इस पद पर 47 वर्षों के बाद हुई। इस बीच न्यायालय में यह मामला चलता रहा।
पहली बार न्यायालय से इस पद की दावेदारी का निर्णय सन 1791 में हुआ जब वीरभूम के कलक्टर कीटिंग ने हस्तक्षेप किया था।
क्रमशः
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#Deoghar
साभार- उदय शंकर