इतवार
कविता
इतवार
*अनिल शूर आज़ाद
यह इतवार
एक बार फिर
एक अज़ीब
खालीपन का
अहसास
दे गया
घर से
निकला तो
अपने-अपने
घर के
टीवी में
हर किसी को
व्यस्त पाया
गलियों में
पागल सा
घूमा मैं..
और अंततः
थककर
सो गया।
(रचनाकाल : 1983)
कविता
इतवार
*अनिल शूर आज़ाद
यह इतवार
एक बार फिर
एक अज़ीब
खालीपन का
अहसास
दे गया
घर से
निकला तो
अपने-अपने
घर के
टीवी में
हर किसी को
व्यस्त पाया
गलियों में
पागल सा
घूमा मैं..
और अंततः
थककर
सो गया।
(रचनाकाल : 1983)