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2 Dec 2016 · 1 min read

इतवार

कविता
इतवार

*अनिल शूर आज़ाद

यह इतवार
एक बार फिर
एक अज़ीब
खालीपन का
अहसास
दे गया

घर से
निकला तो
अपने-अपने
घर के
टीवी में
हर किसी को
व्यस्त पाया

गलियों में
पागल सा
घूमा मैं..
और अंततः
थककर
सो गया।

(रचनाकाल : 1983)

Language: Hindi
254 Views

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