इतने भी बेदर्द नहीं हैं।
माना हम हमदर्द नहीं हैं
वादों के पाबन्द नहीं हैं
पंछी हम उन्मुक्त गगन के
अंतर्मन में द्वंद नहीं हैं
जो कहते हैं सच कहते हैं
कोई भी छल-छंद नही है
अग्रसर हैं अपने पथ पर
चाल हमारी मन्द नहीं है
जितना भी है,ये काफी है
कोई भी सिरदर्द नही है
मतलब की इस दुनिया में अब
कोई हमारी कद्र नही है
राहें कुछ मुश्किल सी हैं पर
आना-जाना बंद नही है
बिखर गए जो हालातों से
हम उनमें से चंद नहीं है
फिक्र हमे भी है अपनों की
इतने भी बेदर्द नही हैं।
– मानसी पाल ‘मन्सू’