इतना सब कुछ
मुठ्ठी भर ठंडी हवा का झोंका
भर दी थी जिसने
मेरे तन मन में असीम शीतलता
और जीने की नई उमंग
अपार ऊर्जा से भरी
भोर की पहली सुर्ख किरण
जो कर गयी थी मुख को
कांतिमय
डाली पर खिले सुबह सुबह के
वो सारे गुलाब
जिनकी मादक सुगंध
महका गयी थी मेरे मन के
हर कोने को
वो सारी की सारी
रंगबिरंगी तितलियाँ
बिखेर दिए थे जिन्होंने
अनन्त खुशियों के रंग
मेरे जीवन के कैनवास पर
हाँ
उपहार ये सारे लेकर
आये थे तुम
वो कहते हैं न
जब किसी के घर जाना हो तो
नहीं जाते खाली हाथ
इतना सब कुछ
ऐसे भी आता है कोई
फिर
आँखों की सारी कालिख़
अधरों के सब कुसुम
हृदय के आसमान से
इन्द्रधनुष के सारे रंग
दिनों की सारी उजास
रातों के सारे ख़्वाब
वीणा के तारों के सब
मधुर स्वर
हाँ
मेरा तो
सब ले गए तुम साथ
वो कहते हैं न
जब किसी के घर से आते हैं तो
नहीं आते खाली हाथ
इतना सब कुछ
ऐसे भी जाता है कोई