*इतना शोषित क्यों*
इंसान आदमी से हुआ ,इतना शोषित है क्यों ?
वर्ताव ए इस जमीं के ,इतने अनुचित हैं क्यों?
अवसादों का वजन इतना, की ढुलता नहीं
हो गया है अकारण ही ,पोषित ही क्यों ।?
नक्शे बनाते हैं ये , सीने की किताव में खुद
हर दिन सवाल मस्तिस्क में,उलझते हैं क्यों ?
दुनियां में रंग रूपों में,अलग दिखे हैं इंसान
फिर कौम के नाम पर , बाँट ही दिया क्यों?
अवतरित हुआ इंसान , उस बक़्त की कोई ,
कहानी नहीं मिलती ,अघोषित है फिर क्यों?
बसा रखी हैं फितरतें , औ दीवारें उठा ली हैं
आवाज़ें थम सी गई हैं,अनुत्तरित हैं क्यों ?
नाप के देखा पाल “साहब”,गहराइयों को तो
खतेदार इंसान का ,आदमी मिलता है यों ?