“इज्ज़त की ख़ातिर”……
शीर्षक : “इज़्ज़त की ख़ातिर”…..
सुबह के करीब दस बज रहे थे और कामवाली बाई विमला अभी तक नहीं आई थी….बाथरूम से नहाकर निकलते ही घड़ी पर नजर पड़ी और घर की मालकिन वसुंधरा देवी को चिंता सी होने लगी थी।
सिंक में रात के झूठे बर्तन भरे पड़े थे और घर का झाड़ू पौंछा सफाई सभी विमला के सुपुर्द ही थी।
कमर और घुटनों की तकलीफ़ के चलते ही उन्होंने दोनों कामों के लिए विशेष तौर पर बाई को लगा रखा था।
“शायद…. कुछ काम हो गया होगा इसलिए देरी हो रही होगी वरना आठ बजे तक तो विमला आ ही जाती है” ,….. मन ही मन सोचकर वसुंधरा जी अपने मंदिर के कमरे में जा अपने नित्य पूजा-अर्चना की तैयारी में जुट जाती हैं।
आधे घंटे की अपनी पूजा के दौरान भी उनका मन विचलित ही रहा,.. ना जाने क्यों आज उनका मन बार – बार किसी अनजानी आशंका भर उठा था….. ।
उसके पीछे एक कारण यह भी था कि जब भी विमला को देरी से आना होता था तो वह एक दिन पहले ही उनसे कहकर जाती थी…या अपनी साथ वाली बाई से कहलवा देती थी…. जो उसके साथ ही वसुंधरा जी के पड़ोस वाले घर में ही काम करती थी।
वसुंधरा जी ने विमला का और इंतजार करने के बजाय पड़ोस
में फोन लगाया ताकि पता चल सके कि उनकी कामवाली बाई को कुछ संदेश में कहा हो विमला ने…!
वसुंधरा जी को उनसे जो पता चला सुनकर तो उनके पैरों के नीचे से जमीन ही खिसक गई थी! … क्योंकि उनके मन की आशंका ने अनहोनी का रूप ले लिया था….!
उन्हें पड़सनने ने बताया कि उनकी कामवाली भी आज काम पर नहीं आई थी….. लेकिन उसने फोन पर ये बात अपनी मालकिन को बताई थी कि,….. “विमला को पुलिस पकड़कर ले गई थी.. क्योंकि उसने कल रात अपनी ही बस्ती के एक लड़के को चाकू मार दिया था….!”
वो नशे की हालत में जबरदस्ती उसकी पन्द्रह साल की नाबालिक लड़की को अपनी हवस का शिकार बनाना चाहता था….विमला ने अपनी और अपनी बेटी की इज्ज़त बचाने की खातिर उसका खून कर दिया था! “