इज्जत करना तू सीख जरा
जाँ यह मेरी कुरबान नहीं
दिल में कोई अरमान नहीं
मिली किराये पर गिनीचुनी
इन साँसों का कप्तान नहीं
पता नहीं कहाँ चला जाये
कोई धरती पर मेहमान नहीं
क्यों दम्भ भरे अब इतना तू
तुझ सा कोई शैतान नहीं
सब कुछ जानबूझ कर करता
हरकत से कभी अंजान नहीं
इज्जत करना तू सीख जरा
मरने पर तुझे क्षमादान नहीं
गर सीख न ली आज गजल से
तुझसा कोई नादान नही
रूलाये जो खूँ के आँसू
तुझ में जिन्दा इन्सान नही
होशियार जो इतना बनता
छोड़ तुझे अब हैवान नहीं
आँख मिचौली को बंद कर दे
तुझसा कोई शमसान नहीं