इजाज़त बिना दिल में आता रहा है!
गज़ल
122……122……122……122
वो हर रोज हमको सताता रहा है!
इजाजत बिना दिल में आता रहा है!
वो बातें जिन्हें भूलना ….चाहता था,
वही याद मुझको ….दिलाता रहा है!
मेरा दिल है जख्मी किसे मैं दिखाऊँ,
वो खंजर पे खंजर …चलाता रहा है!
करूँ मैं यकीं कैसे उस बेरहम पर,
जहर जो दवा में ……मिलाता रहा है!
वो आता रहा बन के …..प्रेमी हमेशा,
मगर दुश्मनी ही निभाता …..रहा है!
……. ✍ सत्य कुमार प्रेमी
08 जून, 2021 स्वरचित एवं मौलिक